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बुधवार, 23 दिसंबर 2009

जीवन कैसे जिए

तन में क्या रखा है बन्दे, तन मिटटी की माया है...
मिट्टी में ही मिल जायेगा, जो मिटटी से आया है
मिट्टी है पहचान सभी की, मिटटी ही तो जननी है
मिट्टी ही है फल जीवन का मिट्टी ही तो करनी है
मिट्टी में ही उगते देखा पौधों, पेडों, पत्तों को
मिट्टी में ही बनते देखा गलियों सड़कों मेडों को
मिट्टी में धंसते देखा मैंने महल अटरों को
मिट्टी से ही आते देखा मैंने प्रलय, बहारों को
एक मिट्टी पर जागा सब जग एक मिट्टी पर सोया
एक मिट्टी पर पाया सबकुछ एक मिट्टी पर खोया
कोई इस मिट्टी को पूजे कोई तिलक लगाये
मिट्टी में ही पैदा होकर मिट्टी में मिल जाये
बाँट नहीं पाओगे इसको खींचो जितनी रेखा
मिट्टी जिसके साथ गयी हो ऐसा कोई देखा??
फिर क्यों तेरा मेरा कहकर मचा रहे हो शोर
इसका भी है-उसका भी है, ये हो या वो छोर
ऐसा सोचोगे तो तुमको बंधेगी एक डोर
कितनी अदभुत होगी जब आएगी ऐसी भोर.

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